Saturday 2 September 2017

बादलों सी ख़्वाहिशें...
पता नही क्यूँ, चली आती हैं,
अचानक ही,,
बेमतलब सी, उड़ते हुए ..
और दे जाती हैं
एक नर्म छाँव,
धूप सी ज़िन्दगी में ..

Wednesday 29 March 2017

दिन की खुरचन है शाम...

कोई कर्ज़ चढ़ा हुआ है शाम पर शायद
जाती धूप के कदमों तले बिछती है रोज़..

धूप के सफ़र में तमाम उम्र निकाल दी
इक शाम तेरी गली में गुज़ारने के लिए ..

दिन के उड़ते ख़्यालों की आवारगी
शाम की गली के नुक्कड़ पर जा रूकी ..

एक सूरज बसा हैं तेरी यादों के उजाले में,
मेरी शामों का रंग कभी ढलता नही है...

एक आवारा दिन को भी,
शाम खूबसूरत ही चाहिए ..

फटा-पुराना दिन ये
चाँद के पैबंद से ढाँक लें ..

उड़ गया था जो पंख फैलाए धूप तले
इंतज़ार में है घर उस परिंदे का शाम ढले...

चाँद का ज़मीं से फासला था बहुत
शाम ने झील में जब तक उतारा ना था...

इक इंतज़ार शाम की आँखों में,
चाँद को उतरना ही पड़ा आँगन में...

धूप की कमाई खर्च कर के,
शाम के लिए एक चाँद खरीदा है..



Tuesday 28 March 2017

शब्द बन बह जाना


ठहरी हुई ख़ामोशी में,
जमने लगती है,
काई भी..

जरूरी है,
कभी-कभी..
निरन्तर चलते जाना..

जरूरी है,
कभी-कभी..
शोर मचाती भीड़ में..
शब्द बन,
बह जाना।

Thursday 2 March 2017

बिखरते हुए रंग

Stories : First Winner

shikha story painting.jpg
बिखरते हुए रंगलेखिका : शिखा सक्सेना 

“चंदर फूलों का बेहद शौकीन था । सुबह घूमने के लिए उसने दरिया किनारे के बजाय अल्फ्रेड पार्क चुना था क्योंकि पानी की लहरों के बजाय उसे फूलों के बाग के रंग और सौरभ की लहरों से बेहद प्यार था और उसे दूसरा शौक था कि फूलों के पौधों के पास से गुजरते हुए हर फूल को समझने की कोशिश करना । अपनी नाजुक टहनियों पर हँसते-मुस्कुराते ये फूल जैसे अपने रंगो की बोली में आदमी से ज़िंदगी का जाने कौन-सा राज कहना चाहते हैं और ऐसा लगता है कि जैसे हर फूल के पास अपना व्यक्तित्व संदेश है जिसे वह अपने दिल की पंखुड़ियों में आहिस्ते से सहेज कर रखे हुए है कि कोई सुनने वाला मिले और वह अपनी दास्ताँ कह जाए ।
और वैसे भी आज चंदर का जी भी कुछ उदास सा था..और आज उसे लग रहा था कि कोई उसकी भी दास्तान सुने चुपचाप से, बिना कुछ कहे और इन फूलों से अच्छा और कौन हो सकता था
शादी का सारा उत्साह खो सा गया, सारी भावनाएँ पलट गई हो जैसे गौरी के लिए ..अगर ये बात पहले ही पता चल जाती तो ये शादी तो वो कभी ना करता और अब उसे गुस्सा आ रहा था
कुछ अनुमान तो उसे पहले ही दिन हो गया था लेकिन उसने उसे मायके से बिछोह का दुख ही समझा और आज सुबह गौरी के उठते ही उसने उसे अपने पास खींच कर बैठाना चाहा तो गौरी के धक्का देने पर हतप्रभ रह गया और उससे भी ज्यादा उसकी बातों से कि वो ये शादी चाहती ही नही थी बल्कि उसकी पहली पसंद इंदर था ..इंदर उसका छोटा भाई ..तो ये बात गौरी ने पहले क्यों ना बताई ..सोचते-सोचते सर में दर्द हो गया उसके और सुबह की चाय पिये बिना ही सैर पर निकल आया पार्क में
तो ये वजह थी गौरी के बार-बार घर आने की और उसने ये आकर्षण अपने लिए समझ लिया ..और वो भी तो कितना पसंद करने लगा था उसे ,एक नदी की तरह चंचल गौरी ..जिसके साथ वो बहना चाहता था
घर जाने का मन ना होने के बावजूद भी जाना पड़ा ..माँ ने सर सहलाते हुए सुबह चाय पिए बिना जाने की वजह पूछी तो मन किया फफक कर उनकी गोदी में रोने का लेकिन बड़े होना आपको संवेदनाओं को छुपाना सीखा देता है
लेकिन अब क्या? ऐसे तो वो ज़िंदगी गुज़ार ही नही सकता ..गौरी से बात करनी ही होगी उसे
“तुम ये बात पहले भी बता सकती थी” .. चंदर का स्वर शांत और ठंडा सा था
“हमारे घर में बड़ों की राय के आगे कोई कुछ नही कह सकता..”
“तो फिर मुझसे ही क्यों कहा” ..कहना चाह कर भी चंदर कह ना पाया
लेकिन एक दीवार सी खींच ली उसने अपने और गौरी के दरम्यान
हाँलकि ये दीवार कभी-कभी गौरी ने तोड़ने की उत्सुकता भी दिखाई लेकिन चंदर तो जैसे बिल्कुल ही भावहीन हो गया हो,
जो चीज हमारे पास हो उसकी कद्र नही रहती लेकिन जब वही दूर जाती दिखती है तो सारी अच्छाई नज़र आने लगती है ..गौरी को भी इंदर की जो बातें आकर्षक लगती थी अब उबाऊ सी लगने लगी ..हर लड़की से हंस कर बात करना तो उसकी आदत में ही था ..मुँह से लगी सिगरेट के उड़ते छल्ले अब उसे उसके अंदाज नही बुरे लगते थे ..लापरवाही और घर  के प्रति उसकी गैरजिम्मेदारी उसे भाते ना थे इसके विपरीत उसे चंदर में ये सारी खूबियाँ नज़र आने लगी थी ..उसकी इच्छा का मान रखते हुए उसने गौरी से दूरी बना रखी थी और अब गौरी को अपनी पसंद पर अफसोस और पिता की पसंद पर गर्व हो रहा था
ऑफिस में प्रमोशन के साथ ट्रांसफर के ऑफर को जो चंदर सिर्फ घर ना छोड़ने की वजह से ठुकरा चुका था वही जब इसके लिए तैयार हो गया तो बाॅस को बड़ा आश्चर्य हुआ और व्यंग्य से मुस्कुराते हुए बोले “”तो चंदर जी शादी के बाद आप भी अकेले ही रहना चाहते है”” चंदर बस मुस्कुरा कर रह गया..घर में बात पता चलते ही गौरी को लगा कि कैसे रहेगी वो चंदर के साथ और माँ को बड़ा दुख हुआ
“बेटा मुझे कम से कम तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी..”
“नही माँ आप गलत समझ रही हो मैं अकेले ही जा रहा हूँ, गौरी यही रहेगी..”
“हैं!! तो क्या गौरी यहाँ अकेले रहेगी..”
“अकेली तो वहाँ पड़ जाएगी माँ, यहाँ तो आप सब हो अभी नई है ना..”
ओट में खड़ी गौरी को लगने लगा कि जैसे किसी भँवर में वो फँस चुकी है जिसका कोई किनारा नही है
“तुम चिंता मत करो मैं जाते ही तलाक के पेपर भिजवा दूँगा .. तुम पर कोई इल्ज़ाम नही आएगा..”
सुनकर दंग रह गई थी गौरी ..  चंदर अभी भी उसी की फिक्र कर रहा था
और आखिर चंदर पहुँच ही गया, अपनी नई जगह नया जीवन शुरू करने.. उस दिन सामान भी ना लगा पाया, शरीर से ज्यादा मन थका हुआ था ..क्या सोचा था और क्या हो गया, एक खालीपन सा जैसे आ गया हो जीवन में
फिर अगले दिन ऑफिस ..जो इतना बुरा भी नही था, लेकिन घर पहुंचकर बहुत अकेलापन लगा, पहली बार परिवार से अलग रहना .. बेमन से फिर सामान लगाना शुरू किया कि बैग में रखा एक गुलाबी पत्र मिला
चंदर,
कई बार हमें सतह के ऊपर की लहरें अच्छी लगती हैं पर बाद में पता चलता है कि समंदर की असली गहराई से उसका कोई संबंध नही ..मैं कितनी गलत हूँ इसका एहसास मुझे आपके जाने के ख्याल भर से हुआ .. मैं और क्या लिखूँ बस यही कि लहरों से हमें किनारे तो मिल जाते हैं लेकिन मैं समुंदर के दिल की गहराई में डूबना चाहती हूँ ।
पत्र पढ़ कर चंदर हल्का सा रुआंसा हो गया .. उसका मन हुआ की गौरी को डांटे कि ये सब क्या लगा रखा है .. लेकिन वो अन्दर से मुस्कराहट खुद से ज्यादा देर न छिपा सका ..और उसी समय अपने ऑफिस पत्र लिखने बैठ गया.. वापस उसी जगह भेजने के लिए .. फूलों के रंग उसकी ज़िंदगी में भी बिखरने लगे थे।


#आजसिरहाने के लिए

Saturday 17 September 2016

इत्ता सा टुकड़ा चाँद का...

                       
चाँद की ठोकर लगी
सारे सितारे बिखर गए ...

महक रही भीनी खुश्बू सी
किसने लगाई रात के हाथों में चाँद-सितारों की मेंहदी सी....

धूप के बिखरे रंगों को बटोर के
चाँद की कटोरी से रात में उड़ेल दें....

बची धूप के टुकड़े चलो उठा लाएँ
चाँद की आरी से सितारे बनाकर आसमान में टाँक आएँ...

इक चाँद टाँग दो रोशनी के लिए
कि आसमां से भी ऊँचे ख़्वाब हैं मेरे..

चाँद के हाथों आसमां थमा गया
समुंदर पर सर रख सूरज सो गया...

चाँद- तारों की छत तले
चंद सपने टहलने चले


Tuesday 26 July 2016

शाम होते जल जाते हैं आँखों में उम्मीदों के दिए

सुलझी हुई राहों को उलझाने के लिए आ जाता है
वो मुझे फिर से बिखराने के लिए आ जाता है

साहिल पर बिखरी रहती हैं जो यहाँ रेत सी ख़्वाहिशें
सागर कोई फिर इन्हे बहाने के लिए आ जाता है

बहुत अंधेरें फैलते हैं जब ख़्वाबों की राह के दरम्यान
चाँद खिड़की से झाँककर रोशनी के लिए आ जाता है

शाम होते जल जाते हैं आँखों में उम्मीदों के दिए
कोई उस सूने घर दस्तक के लिए आ जाता है

जब भी लगा कि पढ़ ली ज़िंदगी की किताब पूरी
सामने एक नया पन्ना पढ़ने के लिए आ जाता है

उजाले अंधेरों में ढलने लगे हैं

उजाले अंधेरों में ढलने लगे हैं
ख़्वाब आँखों में पलने लगे हैं

ज़मीं ही काफी नही थी यहाँ
लोग चाँद पर चलने लगे हैं

एक उम्र धूप का सफ़र करके
रास्ते भी अब बदलने लगे हैं

चुभते हैं तमाम रोशनी के ठिकाने
चमकते सितारे भी जलने लगे हैं

आँखें कह जाती हैं सारा सच
लफ़्ज़ झूठ पर पलने लगे हैं